जवानो में भरोसा, एक दुसरे की इज़्ज़त और इत्तेहाद की लगन कैसे बढ़ाई जाए?
हमारे पालनेवाले ने हमें एक
दुनिया बनाकर उसमे एक साथ रहने के लिए पैदा किया. दुनिया इतनी बेहतरीन बनाया की
इंसान इसे छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं होता. कितनी भी उम्र हो जाए, इंसान को यहाँ
थोड़े दिन और रहने का दिल करता है. लेकिन उसके उलट, अगर इसी दुनिया में हमारे किसी
के साथ रिश्ते ख़राब हो जाए, या झगडा हो जाए तो यही दुनिया हमें काटने दौड़ती है.
अगर झगडा किसी करीबी से हो तो हालात और ख़राब बन जाते है.
हमारी ज़िन्दगी को सुख और
चैन से गुज़ारने में जो पॉइंट सबसे इम्पोर्टेन्ट है वो है लोगों के साथ मिल-जुल कर
रहना. घर वालो के साथ साथ बहार वालो के साथ भी अच्छे अखलाक से पेश आना; फिर वो
हमारे मज़हबो मसलक के हो या बहार वाले.
इसी मुद्दे पर पूरी दुनिया
के अम्न और चैन की बागडोर चल रही है. अगर हम एक दुसरे से प्यार मोहब्बत के बदले
बुग्ज़, किना और जलन की भावना के साथ पेश आएगे, तो हमारी ज़िन्दगी के साथ सोसाइटी
में भी तनाव के हालात पैदा हो जाएगे.
इन सब बातो को सही रास्ते
पर रखने के लिए दीन / मज़हब का अहम् किरदार है. दीन हमें एक दुसरे के साथ साथ
सोसाइटी में इत्तेफाक-ओ-इत्तेहाद से रहने की तरफ आगे बढाता है. लेकिन दूसरी तरफ
शैतान और उसकी फ़ौज हमें इसके ओपोसिट जाने के लिए उकसाते है.
दीनी रहनुमा जैसे
अयातुल्लाह सिस्तानी, अयातुल्लाह खामेनेई, अयातुल्लाह मकारेम शिराज़ी वगैरह हमेशा
दुसरे मज़हबो मसलक के साथ मिल जुल कर रहने की नसीहत करते है लेकिन उसके उलट कुछ
फितना परस्त लोग ज़ईफ़ और कमज़ोर हदीसो का हवाला दे कर अवाम को बहकाने की कोशिश में
लगे रहते है.
मिल्लत-ए-मुसलेमा में अम्न
और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए मुंबई शहर के कुछ मुस्लिम NGOs ने मिल कर
मुख्तलिफ मस्लको के उलेमा और बुज़ुर्गान को एक प्लेटफार्म पर लाने की कोशिश करी. विजडम
फाउंडेशन (Wisdom Foundation) नामी इस ग्रुप ने अंजुमन-ए-इस्लाम की क़दीमी करीमी लाइब्रेरी
में इस फंक्शन को ओर्गनाइज़ किया.
इस प्रोग्राम में सभी मसलक
के बुज़ुर्ग उलेमा हजरात ने शिरकत की जिसमे शिया, सुन्नी, बोहरी, इस्माइली, बरेलवी,
देओबंदी, अहले हदीस, और दीगर मसलक शामिल थे. इतने मस्लाको के उलेमा और दनिश्वरो को
एक साथ एक प्लेटफार्म पर देख कर दिल खुश हो रहा था. सभी उलेमा ने आपस में मिल जुल
कर रहने पर जोर दिया और ये भी तय पाया की सभी हजरात माहे मुबारक-ए-रमज़ान में
इत्तेहाद पर ज़ोर देंगे. कुछ उलेमा ने ऐसे प्रोग्राम्स को हर 3 या 6 महीने में रखने
की ख्वाशिश ज़ाहिर की, जो की एक बहोत अच्चा सजेशन था.
प्रोग्राम के बाद जब सभी
लोग आपस में एक दुसरो से बाते कर रहे थे, वोही मौलाना साहब जिन्होंने ऐसे
प्रोग्राम्स रखने की ख्वाहिश ज़ाहिर करी थी, दोस्तों से वही पुरानी फिरकावाराना
बातें करने लगे जिसमे दुसरे मस्लको को तंज़ और नाकिस करार देने लगे. बात जब अवाम के
सामने कर रहे थे तब इत्तेहाद ज़रूरी था, दोस्तों के बिच अगले वाले गिरोह पर तंज़
कसने लगे. यह बात सही नहीं है.
आपसी मेल-जोल और इत्तेहाद
के लिए जो सबसे ज्यादा ज़रूरी चीज़ है वो है भरोसा और दूसरों की इज्ज़त. जब तक ये
दोनों चीज़े नहीं रहेगी, बाते सिर्फ जुबान तक ही रहेगी. अवाम में ये चीज़े अच्छी तरह
से आए इसलिए इसे बुज़ुर्गान और उलेमा में आना ज़रूरी है.
इस इज्ज़त और भरोसे को अवाम
को बताने के लिए उलेमा को बहार आ कर बहुत सी चीज़े बतानी होगी, जिसमे से कुछ इस तरह
हो सकती है:
- शिया सुन्नी उलेमा एक साथ अहम् मौको पर साथ आए जैसे माहे मुहर्रम के पहले और बिच में साथ में प्रोग्राम
- माहे रमज़ान में एक दुसरे के इफ्तार के प्रोग्रामो में शिरकत
- एक दुसरे की मस्जिदों में जमाज़ बा जमात पढ़ना
- ईद के मौकों पर ईद मिलन प्रोग्राम में जाना
- वगैरह
ऊपर दी गई चीजों का अवाम
में अच्छी तरीके से प्रचार / प्रमोशन करे ताकि अवाम तक यह बात पहुंचे की उलेमा
इत्तेहाद चाहते है.
हमारे मुजतहिद इस बात की
इजाज़त देते है की हम दुसरे मसलक के पेश नमाज़ के पीछे नमाज़ अदा करे, जिसमे कुछ
फुरादा की नियत के साथ नमाज़ पढने के लिए इजाज़त देते है तो कुछ जमात की इजाज़त. इसका
मतलब है की हमारे मुज्ताहेदीन इस बात को समझ रहे है, लेकिन यह बात हम तक नहीं पहुच
रही.
अवाम में शरपसंद लोग यह बात
फैला रहे है की इत्तेहाद से मुराद एक दुसरे के अकाएद को काबुल कर के उसके मसलक पर
अमल करना शुरू कर देना. यह बिलकुल गलत बात है. इत्तेहाद का मतलब है की हम एक दुसरे
की इज्ज़त करते हुए अपने अपने अकाएद को माने और उसपर अमल करे. दुसरो पर अपने अकाएद
को थोपना या बेजा उसपर बहस या तंज़ करना सही बात नहीं है.
इस चीज़ को अवाम तक लाने के
लिए बुज़ुर्गान और उलेमा को अहम् किरदार निभाना ज़रूरी है और ऐसे लोगो पर सख्त करवाई
करने की ज़रूरत है जो अपनी महफ़िलो और मजलिसो को फिरका परस्ती का अड्डा बना बैठे है.
अवाम ऐसे लोगो के बहकावे में आकर धीरे धीरे दुसरे मसलक के लोगो से नफरत करने लगी
है जिसकी जीती जागती मिसाल पिछले दो साल के 13 रजब के जुलूसो में दिखी जहा हमारे
बच्चे और जवान दुसरे मसलक के मुक़द्देसात पर लानत मलामत करते दिखाई दिए.
ऐसी हालत में इस बात पर ध्यान
देना बहोत ज्यादा ज़रुरी है की कौम में भाईचारे और अम्न-ओ-सुकून की बाते दोहराने की
बहोत ज्यादा ज़रूरत है. और साथ ही ऐसे अफराद जो सोसाइटी में मिम्बर और दूसरी जगहों
से शर / अफवाह फैला रहे है उन्हें कंट्रोल करने की भी ज़रूरत है.