"जब उनसे कहा जाता है की
जो अल्लाह ने नाजिल किया है उसकी पैरवी करो; तो कहते है की नहीं! हम तो उसी तरीके से
चलेगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओ को पाया है" (31:21)
अल्लाह ने दीन को आसान
और इंसानी तबियत (नेचर) के लिहाज़ से बनाया है, जिसमे तब्दीली इंसान के वुजूद के
लिए खतरा साबित होती है. लेकिन ज़मीन और ज़माने के लिहाज़ से लोग अलग अलग किस्म की
चीज़े दीन में दाखिल कर देते है जो शुरुवात में तो इतनी नुकसानदेह नज़र नहीं आती, लेकिन
लम्बी मुद्दत में अवाम इसे दीन का हिस्सा बना लेती है.
मुश्किल और भी बढ़ जाती है
जब दीन की वैल्यूज (अक़दार) को इस नई रुसूम से नुकसान पहुचने लगे. इस मामले में
कर्बला जैसी एक अज़ीम कुर्बानी और रुदाद को बहोत नुकसान पहुचाया है.
कर्बला जिसमे शुरू से आखिर
तक फ़िदाकारी और कुर्बानी है; हमारे समाज में मुराद पूरी करने का जरिया बन गई है.
जिसे देखे अपने दिल के हिसाब से मन्नत और मुराद मानता है और उसे पूरा करने के लिए
पूरी ताक़त लगा देता है. सोसाइटी में इतने तरह की मन्नते मिलती है की हमारा दिमाग
काम करना बंद कर देगा. और दिलचस्प बात तो यह है की इनमे से ज़्यादातर मन्नतो का दीन
से कोई रब्त नहीं रहता.
अल्लाह ने कुरान में अपनी
हाजत तलब करने के लिए रास्ता बताया है और वो है:
“और (मुसीबत के वक़्त)
सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो” (2:45)
हम दावा तो करते है की
हम कुरान और अहलेबैत (अ) को मानते है लेकिन जब प्रैक्टिकल ज़िन्दगी में देखा जाता
है तो इनसे कोसो दूर नज़र आते है और अपनी दिल में जो आए वो करते है.
समाज के अक्सर रुसुमात
इसी की एक कड़ी है और अगर कोई आलिम हमारे अपने बनाए हुए रुसूम के खिलाफ ज़र्रा बराबर
भी आवाज़ उठता है तो हम बर्दाश्त नहीं करते और अपने आप को बदलने के बजाए आलिम पर ही
पाबंदिया आएद करने लगते है. ये कैसी नादान हरकत है?
आलिम जब किसी पॉइंट पर
डिस्कशन करता है तब उसके सामने कुरान और अहलेबैत (अ) की सही हदीस होती है और इसी
की रौशनी में वह अपनी बात सलीके से अवाम के सामने रखता है. अवाम को हक हासिल नहीं
की वो ओलेमा पर पाबन्दी लाए और दीन को अपने दिल के हिसाब से चलाने की कोशिश करे.
लेकिन सोसाइटी में कुछ
और ही देखने को मिल रहा है. कुछ मौकापरस्त लोग अपने जाती मफाद के लिए बुज़ुर्ग
ओलेमाओ को दागदार कर के उम पर पाबंदिया लगाने की कोशिश कर रहे है.
क्या उन्हें पता नहीं की
हदीस की रौशनी में “ओलेमा अम्बिया के वारिस है”, “हमारे ओलेमा की अजमत बनी इस्राएल
के अम्बिया से भी अफज़ल है”.
ओलेमा की बेहुरमती अल्लाह और उसके दीन की बेहुरमती है
और ऐसी हरकत को अल्लाह कभी माफ़ नहीं करेगा और अल्लाह का हिसाब बहोत ही करीब और
सख्त रहता है.
तहरीर: अब्बास हिंदी
0 comments:
Post a Comment