4 Oct 2015
23 Jul 2015
जन्नतुल बकी की पामाली पर मुज्ताहेदीन के बयानात
अयातुल्लाह खामेनेई का बयान
अगर जन्नतुल बाकी में आइम्मा-ए-तहिरिन (अ) की कब्र-ए-मुबारक को पामाल करने वालो की आलमी सतह पर उम्मत-ए-मुस्लिमा की तरफ से मुखालिफत ना हुई होती, तो उन्होंने नबी-ए-अकरम (स) की मुक़द्दस कब्र को भी पूरी तरह बरबाद कर दिया होता. ज़रा गौर करे की इनके दिमाग में कैसे खयालात है और किस तरह की शैतानी फुतुर है. इन लोगो में कितनी बग़ावत है वो देखे. यह लोग इस्लाम के मुक़द्दस शक्सियात की ताज़ीम करने के अवाम के हुकूक को गज़ब करना चाहते है, इस हद तक की वो इसे लोगो पर हरम कह कर मुसल्लत कर रहे है.
ऐसा करने के पीछे वह अपना मंतिक (लॉजिक) बताते है की मुक़द्दस शक्सियात की ताज़ीम करना, उनकी इबादत करने के जैसा है. क्या किसी फर्द की कब्र पर एक रूहानी माहोल में जाना और वह जा कर अल्लाह (सु.व.ता.) से उस फर्द पर रहमत नाजिल करने की दुआ करना और खुद अपने आप के लिए दुआ मांगना शिर्क है?
अस्ल शिर्क तो इंग्लैंड और अमेरीका की इंटेलिजेंस सर्विसेज की घुलमि करना और उनका पिट्टू बनना और मुसलमानों के दिलो को दुखाना है.
यह लोग आज दुनिया के ज़ालिम और जाबिर हुक्मरानों के ऑर्डर्स को मानने, उनकी ताज़ीम करने और उनके सामने झुकने को शिर्क नहीं समझते; लेकिन येही लोग इस्लाम के मुक़द्दस शक्सियात के ताज़ीम करने को शिर्क जानते है. यह सबसे बड़ी आफत है.
आज दुनिया-ए-इस्लाम के लिए बहोत बड़ी आफत येही बातिल और गुस्ताखाना मुहीम है जो दुश्मनों ने अपने रुपयों और रेसौर्सस को इस्तेमाल कर के कड़ी करी है – अफ़सोस के उनके पास रूपये और रेसौर्सस है – और ये एक बहोत बड़ी आफत है.
अयातुल्लाह खामेनेई 05/06/2013
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अयातुल्लाह नासिर मकारेम शिराज़ी का बयान
आज से 88 साल पहले, 8 शव्वाल के रोज़, बेगैरत वहाबियत के नापाक हाथ जन्नतुल बकी के मुक़द्दस कब्रस्तान की जानिब बढे और वहा मौजूद पाक हस्तियों की कब्रे जिनमे अहलेबैत (अ) के साथ साथ रसूल-ए-अकरम (स) के बुज़ुर्ग सहबा और रिश्तेदार शामिल है, को मुन्हदिम कर के सिवाए मिटटी के ढेर के कुछ बाकी नहीं रखा. इस हादसे ने दुनिया भर के मुसलमानों के दिलो को शदीद ठेस पहुचाई, खास कर उन शिया और सुन्नियो को, जो अह्लेबैते रसूल (स) से मुहब्बत करते है.
वहाबियत ने अपने बेबुनियाद ख़यालात की बिना पर न सिर्फ मासूम इमामो की क़ब्रो को मुन्हदिम किया, बल्कि मक्का और मदीना में मौजूद तारीखी चीजों और इमारतों को भी निस्तोनाबूद कर दिया, जो न सिर्फ इस्लामी तहज़ीब की निशानिया थी बलकी दुनिया के तमाम मुसलमानों के तारीखी जौहर भी थे.
एक तरफ जहाँ दुनिया के सभी मुल्क अपनी तारीखी बीसातो की हिफाज़त की तरफ खास ख्याल रखते है, अपने सक़ाफत और अजदाद की निशानी समझते है; साथ ही इसके पीछे खासा खर्च भी करते है. इतना ही नहीं, अगर कोई नादान इस धरोहर को नुकसान पहुचाने की कोशिश करे तो उसे सख्त सजा भी देते है. वही दूसरी तरफ यह बेगैरत वहाबियो ने इस्लामी तारीख की पहचान को निस्तोनाबूद कर दिया और दुनिया को इस अज़ीम इस्लामी सकाफ़त की निशानी और गौहर से फाएदा उठाने से दूर कर दिया; जिसका नुकसान रहती दुनिया तक पूरा कर पाना नामुमकीन है.
वह लोग सोचते है की ये इस्लामी निशानिया उनकी माली जएदाद है और मक्का – मदीना उनकी सरवत है, इसलिए वह लोग जो चाहे कर सकते है! आज उम्मत-ए-मुस्लिमा को चाहिए की अपनी आवाज़ बुलंद करे ताकि ये सऊदी हुकूमत समझ सके की ये तारीखी निशानियाँ उनकी जएदाद नहीं, बल्कि तमाम उम्मत-ए-मुस्लिमा की मिलकियत है. दुनिया के माज़ी में और मुस्तकबिल में किसी को ये हक नहीं की वो इन्हें अपनी जाती मिलकियत समझे; यहाँ तक की सऊदी अरब के वहाबी मुफ्तियों को भी ये हक नहीं है; जिन्हें इस्लाम के बुनियाद की भी बराबर से खबर नहीं है और न कुरान और सुन्नत की खबर है; इन्हें ये हक नहीं बनता के अपने जाली फतवों के ज़रिये उम्मत-ए-मुस्लिमा की अज़ीम निशानियो को हाथ लगाए.
हम मक्का और मदीना में जारी इस्लामी धरोहर की पामाली की शदीद मज़म्मत करते है; खास तौर पर जन्नतुल बाकी में मौजूद कुबुर-ए-आइम्मा (अ) के मुन्हदिम होने की; और ये उम्मीद करते है की एक दिन ज़रूर दुनिया के मुस्लमान जागेगे और अपने जायज़ हुकूक के लिए आवाज़ उठाने के साथ साथ मस्जिद-अल-हरम और मस्जिद-अन-नबी (स) की ज़िम्मेदारी तमाम इस्लामिक मुल्को के सुपुर्द करने के लिए क़दम बढाएँगे ताकि इन मुक़द्दस मकामात को कट्टर वहाबियो के चुंगल से आज़ाद किया जा सके. हम दुनिया के तमाम मुसलमानों को 8 शव्वाल के रोज़ को जन्नतुल बकी की याद में जिंदा रखने के लिए आवाज़ देते है, ताकि उसकी याद हमारे ज़ेहनो में ताज़ी रहे.
हम उम्मीद करते है की जन्नतुल बकी में मौजूद आइम्मा-ए-तहिरिन (अ) की क़ब्रो को जल्द से जल्द फिर से पहले से बेहतर तरीके से तामीर किया जाएगा, जिस तरह से सामर्रह का हरम वहाबियो के मिस्मार करने के पहले से बेहतर तरीके से जेरे तामीर है; ताकि मुसलमानों के ज़ख़्मी दिलो को तस्कीन मिल सके.
28 May 2015
हम दूसरों से इतनी नफरत करना कैसे सिख गए?
11 May 2015
Sayyad ki Ghair Sayyad se Shadi
(Al Kafi vol, 8, pg. 182, sifat us shia, hadith
2 May 2015
विलादते इमाम अली (अ) मुबारक
शबे विलादते इमाम अली (अ) में मैं एक फोरार्ड मेसेज; जो की विलादत की मुबारकबाद पेश करने के लिए था.. अपने व्हाट्स ऍप ग्रुप पर पोस्ट किया। ये सोच कर की इससे विलादत के खुशहाली का हक़ अदा हो जाएगा।
उसके बाद जैसे ही रास्ते पर बहार निकला तो एक बुढा इंसान रास्ता क्रॉस करने की कोशिश कर रहा था लेकिन ट्रैफिक की वजह से नहीं कर पा रहा था। मैंने पहले उसे इग्नोर किया; लेकिन जिसकी विलादत का मेसेज फॉरवर्ड किया था उस शख्सियत की याद आ गई और मैंने उस बुढ़े को रास्ता क्रॉस करने में मदद कर दी।
अगर ध्यान से देखे तो आइम्मा (अ) की विलादत और शहादत के मौके इसलिए भी है की हम आइम्मा (अ) की सीरत को हमेशा अपने सामने रखे और उनके दिखाए रास्ते पर ज़िन्दगी गुज़ारे।
मेसेज फॉरवर्ड करना या किसी को मुबारकबाद देना अस्ल मक़सद नहीं रहा है और न कभी रहेगा। इन पाक और मुक़द्दस दिनों का मक़सद इंसान को अंदर से बदलना है।
ज़ुबान पर मुबारकबादी और दिल में कालीक.. यह कभी दीन ने नहीं सिखाया। चाहा यह जा रहा है की हम हक़ीक़त वाली ज़िन्दगी जिए। दिल अंदर से पाक हो और उस तालीम को, जिसे आइम्मा (अ) ने हमें सिखाया है उसे अपनी ज़िन्दगी में अपनाए।
विलादत ए वली ए अव्वल, वली ए मुत्तक़ीन, वली ए अम्र, आयात ए मज़हर ए इलाही इमाम अली (अ) आप सब को बहोत बहोत मुबारक हो।
खुदा हम सब को असली पैरव ए इमाम अली (अ) बनाए और हमारे दिलो को अंदर से पाक करे। इस दिल में मज़लूमो के लिए दर्द और जालिमो से नफरत दे और खुद अपनी ज़िन्दगी से ज़ुल्म को बहार करने की तौफ़ीक़ दे।
ईद-ए-ग़दीर क्या है?
18 ज़िल्हज्ज की तारीख आते ही “ईद-ए-ग़दीर मुबारक” के मेसेज व्हाट्स अप पर आने लगते है; लेकिन इन मेसेज में ईद के बारे में कम और किसी ...
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अयातुल्लाह खामेनेई का बयान बड़े अफ़सोस की बात है की आज मुसलमानों और इस्लामी उम्मत के बिच कुछ ऐसी दकियानूसी, अन्धविश्वासी और तकफिरी फ़...
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माहे रजब और शाबान की आमद हमारे लिए खुशियों का बाईस होते है जिसमे हम अपने इमामो और अवलिया की विलादत का जश्न मानते और उनसे करीब होने की को...
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“नस्ल और नसब की फजीलत सिर्फ तब है जब इंसान मुत्तकी हो, वरना नहीं!” अल काफी में इमाम जाफ़र सादिक (अ) फरमाते है के जब रसुलेखुदा (स) ने ...
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शबे विलादते इमाम अली (अ) में मैं एक फोरार्ड मेसेज; जो की विलादत की मुबारकबाद पेश करने के लिए था.. अपने व्हाट्स ऍप ग्रुप पर पोस्ट किया। ये सो...