"जब उनसे कहा जाता है की
जो अल्लाह ने नाजिल किया है उसकी पैरवी करो; तो कहते है की नहीं! हम तो उसी तरीके से
चलेगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओ को पाया है" (31:21)
अल्लाह ने दीन को आसान
और इंसानी तबियत (नेचर) के लिहाज़ से बनाया है, जिसमे तब्दीली इंसान के वुजूद के
लिए खतरा साबित होती है. लेकिन ज़मीन और ज़माने के लिहाज़ से लोग अलग अलग किस्म की
चीज़े दीन में दाखिल कर देते है जो शुरुवात में तो इतनी नुकसानदेह नज़र नहीं आती, लेकिन
लम्बी मुद्दत में अवाम इसे दीन का हिस्सा बना लेती है.