तकलीद
ग़ैबते इमामे ज़माना (अ)
के दौर में अवाम को दीन के अहकाम को उसके हकीकी सूरत में पहुचने के लिए समाज में
से कुछ लोगो को खास तौर पर दीनी इल्म हासिल कर के उस मकाम पर पहुचना ज़रूरी है जहाँ
पर वो कुरान और हदीस में रिसर्च कर के ज़िन्दगी में पेश आने वाले मसाइल को लोगो के
सामने पेश करे ताकि लोग इन अहकामात पर अमल करते हुए अपनी ज़िन्दगी बसर करे और
कमियाबी तक पहुंचे.
अस्ल में देखा जाए तो हर
इंसान के लिए ज़रूरी है की वो इतना दीनी इल्म हासिल करे जिससे की वो अपनी ज़िन्दगी
में पेश आने वाले मसाइल को कुरान और हदीस की रौशनी में हल कर सके. लेकिन हकीक़त की
नजरो से दखा जाए तो यह किसी आम इंसान के लिए मुश्किल मरहला है की वो अपने ज़िन्दगी
के उमूर भी अंजाम दे और दीन का दकीक इल्म भी हासिल करे. इसलिए बेहतर सूरत समाज के
लोगो के लिए यह है की कुछ लोग दीन का इल्म हासिल करने के लिए जद्दो जहद करे और
मुजतहिद बने ताकि अवाम अहकामात में इन मुज्तहेदीन को फॉलो करे या उनकी तकलीद करे.