3 Nov 2016

रुसुमात और ओलेमा की बेहुरमती



"जब उनसे कहा जाता है की जो अल्लाह ने नाजिल किया है उसकी पैरवी करो; तो कहते है की नहीं! हम तो उसी तरीके से चलेगे जिस पर हमने अपने बाप दादाओ को पाया है" (31:21)

अल्लाह ने दीन को आसान और इंसानी तबियत (नेचर) के लिहाज़ से बनाया है, जिसमे तब्दीली इंसान के वुजूद के लिए खतरा साबित होती है. लेकिन ज़मीन और ज़माने के लिहाज़ से लोग अलग अलग किस्म की चीज़े दीन में दाखिल कर देते है जो शुरुवात में तो इतनी नुकसानदेह नज़र नहीं आती, लेकिन लम्बी मुद्दत में अवाम इसे दीन का हिस्सा बना लेती है. 

Rusumaat aur Olema ki behurmati



"Jab unse kaha jaata hai ki jo Allah ne nazil kiya hai uski pairavi karo; to kehte hai ki nahi! Hum to usi tariqa se chalege jis par humne apne baap dadao ko paaya" [31:21]

Allah (SWT) ne deen ko aasan aur insani tabiyat (nature) ke lihaz se banaya hai, jisme tabdeeli insan ke wujood ke liye khatra sabit hoti hai. Lekin zamin aur zamane ke lihaz se log alag alag qism ki chize deen me dakhil kar dete hai jo shuruwaat me to itni nuksaandeh nahi dikhai deti, lekin lambi muddat me awaam ise deen ka hissa bana leti hai. 

11 Oct 2016

करबला - इंकेलाबी या रुसुमी?

करबला के वाक़ये को देखा जाए तो हर एक शहीद अपनी जान देने के लिए तैयार नज़र आता है. शबे आशूर सभी माएं और बहने अपने बच्चो और भाइयो की हौसला अफ़ज़ाई करती नज़र आती है की दीं की हिफाज़त के लिए जान देने में किसी भी तरह की कोताही ना होने पाए.

लेकिन जब हम अपनी मजलिसो और नौहों पर नज़र डालते है तो ऐसा महसूस होता है की हर शहीद अपने ज़ख्मो से ग़मज़दा है और औरते अपने बच्चो को खून में लथपथ देख कर रंज और सदमे में है.

कही कोई जनाबे अली अकबर को दूल्हा बना देखना चाह रहा है तो कोई जनाबे कासिम की शादी होती देख रहा है; यह रोज़े आशूर की हक़ीक़त से कोसो दूर है और करबला के पैग़ाम के साथ नाइंसाफी है.

Karbala – Inqelabi ya Rusumi?

Karbala ke waqye ko dekha jaae to har ek Shaheed apni jaan dene ke liye tayyar nazar aata hai. Shabe Aashur sabhi maae aur behne apne bachcho aur bhaiyo ki hausla afzaai karti nazar aati hai ki deen ki hifazat ke liye jaan dene me kisi bhi tarah ki kotahi na hone paae.

9 Oct 2016

Muharram aur Mazloom ki Himayat

*शब्बीर अगर तेरी अज़ादारी ना होती..*
*मज़लूम की दुनिया में तरफदारी ना होती।*

यह जुमले नदीम सरवर के नौहे के बंद नहीं बल्कि मुहर्रम में और अपनी ज़िन्दगी में हर मज़लूम के लिए आवाज़ उठाने के लिए पैग़ाम है।

लेकिन अफ़सोस, इन्ही मुहर्रम के दिनों में *ज़ालिम सऊदी हुकूमत* मज़लूम *यमन* पर _*अमेरिका, बर्तानिया और इजराइल*_ की मदद से हमले कर के हज़ारों मज़्लूमो की जान ले रहा है और हमारे मिम्बर खामोश है।

*अपने आप से सवाल करीये ऐसा क्यों?* 🤔🤔

क्या हमने हमारे ज़ाकिरो से इस मसले पर बात करी?

क्या ज़ाकिरो को यह एहसास है कि हम ज़िंदा क़ौम है और दुनिया में हो रहे मसाएल से बाख़बर है?

अगर हमने अभी तक ऐसा नहीं किया है तो आज ही अपने मकामी ज़ाकिर से कहिये की *मुहर्रम के इन मुक़द्दस दिनों में शोहोदा ए यमन पर रौशनी डाले। अगर ज़ाकिर को इस मौज़ू के बारे में पता नहीं है तो वे पता कर के इस ज़रुरी बात को रखे*

हमारी बेदारी हमे ज़िंदा रखेगी और हमारी आने वाली नस्लो तक मुहर्रम का पैग़ाम पहुँचेगा।

www.qaumihalaat.in

रुसुमात और ओलेमा की बेहुरमती रुसुमात और ओलेमा की बेहुरमती

"जब उनसे कहा जाता है की जो अल्लाह ने नाजिल किया है उसकी पैरवी करो; तो कहते है की नहीं! हम तो उसी तरीके से चलेगे जिस पर हमने अपने ...

Rusumaat aur Olema ki behurmati Rusumaat aur Olema ki behurmati

"Jab unse kaha jaata hai ki jo Allah ne nazil kiya hai uski pairavi karo; to kehte hai ki nahi! Hum to usi tariqa se chalege jis ...

करबला - इंकेलाबी या रुसुमी? करबला - इंकेलाबी या रुसुमी?

करबला के वाक़ये को देखा जाए तो हर एक शहीद अपनी जान देने के लिए तैयार नज़र आता है. शबे आशूर सभी माएं और बहने अपने बच्चो और भाइयो की हौसला अफ़ज़...

Karbala – Inqelabi ya Rusumi? Karbala – Inqelabi ya Rusumi?

Karbala ke waqye ko dekha jaae to har ek Shaheed apni jaan dene ke liye tayyar nazar aata hai. Shabe Aashur sabhi maae aur behne apne bach...

Muharram aur Mazloom ki Himayat Muharram aur Mazloom ki Himayat

* शब्बीर अगर तेरी अज़ादारी ना होती.. * * मज़लूम की दुनिया में तरफदारी ना होती। * यह जुमले नदीम सरवर के नौहे के बंद नहीं बल्कि मुहर्रम में और...

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